कश्मीर के त्यागी, अपरिग्रही विद्वान कल्हण – कश्मीर का सम्मान
Kashmir- Heaven on Earth |
Kashmir
solitaire, Aprigrhi scholar kalhan – honor of Kashmir
कश्मीर
एक ऐसा शहर जिसे दुनिया का दूसरा जन्नत कहा जाता है । इसका नाम जेहन में आते ही यहाँ के वातावरण की
सुन्दरता, पवित्रता बसबस ही हमारे मन को अपनी और खींचने लगती है । और इसी लिए इसे धरती का स्वर्ग कहा जाता
है ।
Heaven शब्द मन में आते ही हर तरफ Holiness, Beauty and Charms, Happiness – prosperity, Knowledge, Dedication और Disclaimer के विचार अंत:करण में उठने लगते हैं और ऐसा लगता है कि स्वर्ग में इन
गुणों से पूरित लोग ही रहते हैं तभी तो वहां सुख – वैभव स्थापित है क्योंकि इन
गुणों के बिना तो जीवन नर्क में होता है । और Kashmir को Paradise इसीलिए कहते हैं क्योंकि यहाँ कि धरती के लोग, ज्ञान – वैभव से समर्पण –
त्याग के गुणों से परिपूर्ण हैं ।
और इनका अंत:करण ओत –प्रोत है आन्तरिक पवित्रता, व ज्ञान से ।
ऐसी ही Solitaire, Scholar, देश को समर्पित ऋषि अस्तिव को धारण करने वाली Kashmir की धरती पर एक
विद्वान सत्ता हुई है जिनको सब श्रद्धा से ऋषि कल्हण कहते हैं ।
कल्हण कश्मीर के अपने समय के बड़े विद्वान हैं ।
इन्होंने कई भाष्य लिखे है । इनके लिखे सभी साहित्य, साहित्य जगत में मील के पत्थर
हैं । कल्हण बहुत- बड़े विद्वान होते हुए भी एक सहज संत थे
। वो आत्म संतोषी थे । और साथ ही धन संचय से स्वयं को दूर रखते थे । Kashmir के
raja उनकी विद्वत्ता के आगे नतमस्तक थे और हर - समय ऋषि कल्हण को सम्मानित करने को
लालायायित रहते थे । उन्होंने ने उनको कई बार धन – वैभव देकर सम्मानित करना चाहा पर कल्हण ने उस सामान को
थूका दिया । उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि वो सादा, पवित्र व अपरिग्रह ब्राह्मण
का जीवन जीते हुए, अपने ज्ञान के द्वारा साहित्य जगत की सेवा करना कहते थे । वो एक
सच्चे अपरिग्रही संत थे ।
एक बार, कल्हण से मिलने उज्जयनी से एक विद्वमंडल
आया । कल्हण उन सभी से अपनी झोंपड़ी के बाहर मिले, नैसर्गिक परिसर, नदी के किनारे
हरी हरी घास पर सभी बैठ कर चिंतन – परामर्श कर बड़े प्रसन्न हुए। इसके साथ ही उज्जनी
के विद्वान मन ही मन Kashmir के raja से अप्रसन्न हुए। उन्हें लगा कि Kashmir का
राजा परखी नहीं है, उसे विद्वानों कि कद्र नहीं है। जो उसने इतने प्रख्यात और
सम्मानयीय चिन्तक – लेखक को उचित सम्मान नहीं दिया। इतने बड़े विद्वान को वो एक भवन
तक नहीं दे पाए । यहाँ तो सिर्फ गरीबी ही गरीबी दिख रही है, राजा को क्या एक भवन
तक इतने बड़े विद्वान को नहीं देना चाहिए था । यहाँ का raja तो बड़ा निष्ठुर है ।
वो सब के सब राजा के पास गये और वहां पहुँच कर सभी
ने राजा के सामने अपना असंतोष प्रदर्शित किया और उनको खरा खोता सुनाया । राजा ने सभी
विद्वजनों से बड़े ही विनम्र भाव से कहा -“ मान्यवर! हम तो कह – कहकर और प्रयास कर –
कर के थक गये हैं । प्रभु कल्हण तो कुछ स्वीकार ही नहीं करते । यहाँ तक ऋषि कल्हण
तो कहते है कि अब यदी आप जिद करेगे तो हम आप का राज्य छोड़ देंगे। आप प्रयास करके
देखें, हम आप को साधन देते हैं ।”
सभी विद्वान जन राजा कि दी हुई सामग्री लेकर कल्हण
की झोंपड़ी पर पहुँचे । जब kalhan को पता चला कि राजा ने पुनः सामान भेजा है तो वो
अपनी wife से बोले – “ सामान बांध लो। यहाँ के राजा को धन का घमंड हो गया है । हम
इस राज्य में अब नहीं रहेंगे।” सभी विद्वानों को जब अपनी गलती का एहसास हुआ तो सभी
ने कल्हण से क्षमा याचना की । और कल्हण से वो बोले – “ हमारे आग्रह पर raja ने
विवश होकर यह सामग्री भेजी है। हम आके अपरिग्रही ब्राह्मण वाले स्वरूप को पहचान
नहीं पाए थे, और राजा को गलत समझ बैठे थे और उनसे आप को ये सामग्री देने की जिद की
थी । यह हमारा ही अज्ञान था ।”
अपरिग्रही
का अर्थ होता धन का संचय न करने वाला।
स्वयं की मेहनत पर, समाज पर और अपने भगवान पर विश्वास करने वाला । और एक सच्चे
ब्राह्मण का असली अस्तित्व ही अपरिग्रह जीवन जीना है । और अपरिग्रही जीवन ही एक
संत व ब्राह्मण की सिद्धि होती है ।
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