जीवन को बदलने की क्षमता
रखने वाले सद- वाक्य
स्वयं का शिक्षक बनकर स्वयं को शिक्षा देना ही ज्ञान है ।
(द्वारा – श्री राम शर्मा आचार्य)
भगवान का अनुग्रह अर्जित करने के लिए भी शुद्ध जीवन कि आवश्यकता है ।
साधक ही सच्चे अर्थों में उपासक हो सकता है। जिससे जीवन- साधना नहीं बन पड़ी, उसका
चिंतन, चरित्र, आहार, विहार, मस्तिष्क अवांछनीयताओं से भरा रहेगा। फलत: मन लगेगा
नहीं। लिप्साएं और त्रिष्णाएं जिसके मन को हर घडी उद्दिग्न किये रहती हैं, उससे न एकाग्रता सधेगी और न
चित्त कि तन्मयता आएगी। कर्म कांड कि चित्त पूजा से भर से कुछ बात बनती नहीं । भजन
का भावनाओं से सीधा संबंध है। जहाँ भावनाएं होंगीं, वहां मनुष्य अपने गुण,
कर्म,स्वभाव में सात्विकता का समावेश अवश्य करेगा । (द्वारा – श्री राम शर्मा आचार्य)
भगवान
मूर्तियों या मंदिरों में नहीं हैं । भगवान
हमारी अनुभूतियों में ही विराजमान हैं । हमारी
आत्मा ही भगवान का मंदिर है, सभी के शरीर में आत्मा रूपी मंदिर में अनुभूति रूपी
भगवान विराजित रहते हैं । बस इंसान इन्हें महसूस नहीं
कर पता और दुनिया भर में खोजता रहता है । जबकि भगवान हमारे अंदर ही मौजूद हैं ।
(द्वारा – आचार्य चाणक्य)
सदाचार के विचारों का चिंतन करने से ही आत्मा को अपार शांति और
शीतलता प्राप्त होती है । ईश्वर चाहता है कि प्राणी इस जगत में अच्छे – अच्छे कार्य करे और अन्त
में परम मोक्ष को प्राप्त करे ।
(द्वारा – युग ऋषि श्री राम शर्मा आचार्य)
व्यक्तिगत
जीवन में महानता उत्पन्न करने के लिए सेवा धर्म अपनाया जाना अनिवार्य रूप से
आवश्यक है । गुण, कर्म, स्वभाव में उत्कृष्टता बढ़ाने का अभ्यास परमार्थ, परोपकार
की प्रक्रिया अपनाने से ही सम्भव है ।
(द्वारा
– युग ऋषि श्री राम शर्मा आचार्य)
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अंत में आप सब readers
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