निडरता
निर्भीक संत |
स्वामी
विवेकानंद जी कि निर्भीकता से हम सब भली भांति परिचित है वो एक कर्मठ देशभक्त,
समाजसेवी व great sage थे, ये सारे गुण उनको उनके गुरु श्रीरामकृषण परमहंस कि कृपा
और उनके सानिध्य से प्राप्त हुए।
स्वामी जी बचपन से ही निडर थे साथ ही उनमें जिद्दी पन भी बहुत था। वो जिस बात पे अड़ जाते उसको
मनवा के ही रहते थे। इसके
साथ ही उनमें नेतृत्व का गुण भी बचपन से
ही विदमान था.
बचपन में
सब swami Vivekananda को नरेन्द्र के नाम से पुकारते थे,
नरेन्द्र
को कभी किसी बात से डर नहीं लगता था या हम कहे कि डर उनको छू भी नहीं पता था चाहे
भुत-प्रेत कि ही बात क्यों न हो.
नरेन्द्र
के जीवन कि एक घटना है जो उनकी निर्भीकता का ये प्रमाण देती है कि वो बचपन से ही कितने
निडर थे।
नरेंद्र
के घर के पड़ोस में एक घर था, उस घर में चंपा का एक पेड़ था. नरेंद्र अपने साथियों
के साथ अक्सर यहाँ खेलने आ जाते और चम्पा के पेड़ पर चढ़ जाते और अपनी जांघों कि
कैंची बना पेड़ कि डाल को पकड़ कर उल्टा झूलने लगते थे। एक दिन नरेन्द्र इसी तरह एक ऊँची डाल पे उल्टा लटक
के झूला झूल रहे थे, बिलकुल चमगादड़ कि तरह।
घर के
मालिक ने जब यह देखा तो डर गये कि बालक कही गिर न पड़े, और यदी यह बालक गिर पड़ा तो
इसका सिर फट जायेगा, यह सोच कर वह कांप उठे।
इसलिए
उन्होंने नरेन्द्र को डराने कि सोची और कहा- “ बेटा नरेंद्र! आगे से इस पेड़ पर मत
चढ़ना, इस पेड़ पर एक ब्रह्म राक्षस (बड़ा प्रेत) रहता है जो बहुत विकराल है। जब कोई इस पेड़ पर चढ़ता है, तो वो नाराज हो जाता है
और उसको बहुत क्रोध आ जाता है और फिर वो उन सब को मारता है ।”
नरेन्द्र
चुप चाप उसकी बात को सुनते रहे, घर के मालिक ने नरेन्द्र को चुप देखा, तो समझा कि
वह अब डर गये है और अब वह चम्पा के पेड़ पर इस तरह नहीं चढ़ेंगे। यह सोच कर वह वहां से घर के अंदर
चले गये।
पर उनके
जाते ही नरेन्द्र फिर चम्पा के tree पर चढ़ गये और अपने साथियों से बोले,” आज तो मैं
इस ब्रह्म राक्षस को देखकर ही रहूँगा कि वो
कितना बड़ा है,” यह सुन, उनके साथी डर गये, और बोले- ‘ना बाबा वो हम सबको मर डालेगा।’
इस पर नरेन्द्र
ने हँस कर कहा-“ अरे! ये सब बातें हम लोगों को डराने के लिए कही गई हैं । वास्तव में आज तक ब्रह्म राक्षस को किसी ने देखा भी हैं?
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