शिक्षक,
शिष्य व सच्ची शिक्षा
Teacher, Student and true learning
ऋषि धौम्य का सुरम्य
ashram था । यहाँ ऋषि धौम्य अनेको लोगों को शिक्षा का ज्ञान- दान देते थे ।
अनेकों students यहाँ पढ़ते थे । ऋषि धौम्य एक श्रेष्ठ teacher थे, वे पूरी लगन और
श्रद्धा से अपने सभी शिष्यों को पढ़ाते थे, बिना किसी भेद - भाव के । वो कभी राजा
के बेटे और साधारण किसान के बेटे में कोई भेद नहीं करते थे । सब को एक समान ही
ज्ञान का दान मिलता था ।
ऋषि धौम्य हमेशा ये ध्यान रखते थे, की उनके सभी शिष्यों में सद्गुणों
की वृद्धि हो रही है या नहीं, इसके लिए वो अपने सभी students की time to time परीक्षा
भी लेते रहते थे ।
एक दिन मूसलाधार वर्षा हो रही थी । ऐसे में ऋषि धौम्य ने अपने एक
बहुत ही होनहार शिष्य आरुणी की परीक्षा लेने की सोची ।
उन्होंने आरुणी को अपने पास बुलाया और कहा –“ बेटा ! तेज बारिश के
कारण पास वाले खेत की मेंड़ टूट गयी है, जिसके कारण खेत का पानी बाहर निकला जा रहा
है। तुम जाकर मेंड़ बांध आओ ।”
आरुणी तत्काल ही उठा और बोला –“ जैसी आज्ञा प्रभु की ! मैं खेत पर
चलता हूँ, कह वह खेत पर चल दिया ।”
आरुणी मेंड़ बनाने लगा, पर water का बहाव बहुत तेज था । इस कारण मेंड़
बार – बार टूट जा रही थी । आरुणी से water रुक नहीं पा रहा था । जब किसी भी उपाय से
पानी न रुका तो यह देख आरुणी उस स्थान पर
स्वयं लेट गया । इस प्रकार पानी को खेत के बाहर जाने से रोक लिया ।
आरुणी पूरी night ऐसे ही मेंड़ पर लेटा रहा, जिससे पानी रुका रहे ।
इधर बहुत रात्रि बीत जाने पर भी जब आरुणी ashram नहीं लौटा तो ऋषि
धौम्य को उसकी चिंता हुई और वे खेत पर उसे ढूंढने पहुँचे । खेत पर जा कर उन्होंने
देखा तो आरुणी पानी को रोके मेड़ के पास पड़ा है ।
यह देखते ही ऋषि धौम्य की छाती अपने शिष्य के लिए भर आयी । उन्होंने
आरुणी को उठाकर अपने गले से लगा लिया ।
ऋषि धौम्य अपने शिष्य के ऐसे समर्पण पर गर्वान्वित हो उठे ।
Friends, सच्ची
शिक्षा सिर्फ अक्षर ज्ञान कराने से ही पूर्ण नहीं होती बल्कि सच्ची शिक्षा तो शिष्यों
में सद्गुणों को समावेश करने से होती है ।
सच्ची शिक्षा बड़ी – बड़ी degree लेने व दिलाने में , बड़े –बड़े ग्रन्थों
को रटने व रटाने में नहीं है, सच्ची शिक्षा तो व्यक्ति के जीवन में सद्गुणों के
बीज रोपित करने व उनको सीचने नें है । सद्गुणों से पूर्ण श्रेष्ठ व्यक्तित्व के
निर्माण में है ।
पर friends, आज – कल हमारा education sector बहुत ही
commercial हो गया है । आज तो शिक्षा पूर्णत: व्यवसाय बन गयी है । जहाँ पहले teacher शिक्षा
का दान देना सबसे बड़ा पुन्य का कार्य समझते थे और student योग्य teacher की तलाश
में अपना घर बार छोड़ दूर सुदूर में बसे आश्रमों में शिक्षा प्राप्ति के लिए जाते
थे । तब teacher भी योग students के इन्तजार में रहते थे जिन्हें वे अपना पूरा अर्जित
ज्ञान प्रदान कर सकें । और इस शिक्षा दान के बदले जो गुरु दक्षिणा मिल जाती थी उसे
वो सहर्ष स्वीकार कर लेते थे और students भी अपने teacher की माँगी दक्षिणा हर –
हाल में अपना जीवन अर्पण कर देते थे । दोनों लोगों के बीच पूर्ण समर्पण के भाव
होते थे... गुरु शिष्य को सब कुछ अपना सिखा देने को आकुल और शिष्य सब कुछ सीख लेने
को तत्पर । पर आज.... कहाँ गयी ऐसी शिक्षा प्रणाली जो सद्गुणों की खान जैसे शिष्य
बना सके... ?
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