गंगा का सुरमय तट था, तट के किनारे बहुत ही सुंदर –सुंदर व सुगंधित पेड़-पोधों के झुरमुट आनंद में डूबे
मधुर बहती सलिल के साथ अठखेलियाँ कर रहे थे चारों तरफ सुंदर सुवाश फैला था ।
वहीँ Coconut के लम्बे – लम्बे वृक्ष आसमान की उचाईयों को छू कर गंगा के इस तट की सुन्दरता को और गर्वान्वित करा रहे थे । और वहीँ नारियल के
फल स्वयं को peak of the tree पर देख मद-मस्त थे ।
वहीँ तट के किनारे एक stone भी अपना मधुरमय जीवन श्रद्धा से नदी की
आती – जाती लहरों के साथ बड़ी आत्मीयता से व्यतीत कर रहा था । लहरें आती उससे
टकराती और चली जाती । कभी – कभी कोई मुसाफिर निकलता तो उस पत्थर पर विश्राम कर आगे
बढ़ जाता । तो कभी कोई राहगीर के पैरों तले आ जाता तो वह राहगीर से कष्ट के लिए
क्षमा मांग लेता । इस तरह वो श्रद्धा से गंगा तट पर लहरों के साथ अठखेलियाँ करता
विनम्र और शान्तमय life जिए जा रहा था ।
one day, नदी के तट पर लगे नारियल के पेड़ से एक नारिकेली पत्थर के इस
जीवन को बड़े ध्यान से देख रहा था । वह अपने जन्मदाता के सर्वोच्च स्थान पर विराजित
था इस बात का उसे बहुत proud था । उस ने उस पत्थर से कहा –“ रे पत्थर ! तेरी भी
क्या जिंदगी है । तू तो हर आने- जाने वालों की ठोकरें खाता है। यहाँ तक कि तुम जिस
नदी के किनारे पड़े हो उसकी लहरें भी तुमे टक्कर मार – मार कर चोटिल करती रहती हैं ।
तुम्हें अपमानित करती हैं । अपमान की भी हद होती है, पर तुम को क्या, तुम तो बड़े
बेशरम हो । मुझे देखो, मैं कितने स्वाभिमान से कितनी उन्नत स्थिति में बैठा मौज कर
रहा हूँ । यहाँ पेड़ के सर्वोच्चतम स्थान से सारी दुनिया का नजारा देखता हूँ । तुम
तो लगता है ऊहीं घिसते- घिसते ही मर जाओगे ।”
पत्थर ने नारियल के फल की बात चुप- चाप सुन ली, पर कहा कुछ नहीं, बस
मौन की नीरवता में अपनी जीवन साधना करता रहा । और वैसे ही लहरों के साथ टकराता रहा
और घिसता रहा पर उफ़ ना किया । घिसते - घिसते छोटा और गोल हो गया ।
one day, एक pujari उधर से गुजर रहा था, तो उसने गोल आकृति के इस पत्थर
को देखा और कहा- “ये तो शालिग्राम है ।” फिर उस पत्थर को वह उठा कर अपने temple
में ले आया और श्रद्धा से temple में स्थापित कर दिया ।
उधर गंगा तट पर one night, तेज आँधी आयी और वो Coconut fruit
अपने जन्मदाता से अलग हो जमीन पर आ गिरा और दो टुकड़े हो गया। वहां से एक लड़का
निकला और उसने उस उस नारियल को उठा कर temple ले आया और temple में उसे उस पत्थर
पर चढ़ा दिया, जो अब शालिग्राम बन गया था ।
नारियल टूट गया था, पर उसका अभिमान कम न हुआ था । उसके हाव – भाव में
स्वयं को God पर चढ़ाये जाने के अभिमान से पूर्ण भाव स्पष्ट नज़र आ रहे थे ।
नारियल की इस भाव मुद्रा को देख शालिग्राम पत्थर बोल उठा – “ हे नारिकेली ! देखा तुमने
घिसने का परिणाम । हम तो घिस – घिस कर परिमार्जित हो साधारण पत्थर से शालिग्राम बन
प्रभु चरणों में आ गये । जहाँ हमारी पूजा होती है और तुम कहाँ इतनी उचाई पर थे पर
अब कहाँ हो.... तुम्हारा तो अस्तित्व ही समाप्ति पर है। अब तो तुम समझ जाओ कि
अभिमान के मद में मतवालों की दुर्गति ही होती है।”
नारियल अब सब साझ गया था और आसूँ बहा रहा था, पर अब बहुत देर हो गयी
थी...
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