Proud
of who, one day would surely Fall of
proud of who one day would surly fall of |
गर्व करने वालों का
एक दिन निश्चित ही पतन होता है ।
एक बार बड़ी जोर की हवा चल रही थी। बवंडर का वेग तेज था । चारों तरफ
तूफान ही तूफान का नजारा था । सब कुछ आकाश में उड़ रहा था । बड़ी तीव्र थी ये आँधी ।
ऐसी आँधी जिसमें तिनके- पत्ते, धुल- कण सब आसानी से आसमान में ऊँचे उड़ने लगते हैं ।
धूल भी तेज आँधी में ऊपर बहुत ऊपर आकाश में पहुच गई थी; और चारों तरफ
छा गयी । सम्पूर्ण आकाश में धुल के कण के सिवा कुछ भी दिख नहीं रहा था। धूल ने अपने
आप को इतनी उचाईयों पे देखा तो उसे स्वयं पर घमंड आ गया और वो आकाश से बोली –“
देखो आज मेरे से ऊँचा कोई नहीं । मैनें तुम को ढक लिया; चारो दिशाओं में मैं ही
मैं हूँ; जल, थल, नभ जहाँ देखो मेरा ही अस्तित्व है, दसों दिशाओं में मैं ही
व्याप्त हूँ ।”
बादल धूल की ये गर्व से भरी बातें सुन रहा था । वो धूल के गर्व पे
हँसा और जोर का अट्टहास किया । उसके अट्टहास करते ही बिजलियाँ कडकने लगीं । जल कि
धाराएँ खुल गयी और देखते ही देखते पानी बरसने लगा । धूल के कण भीगने लगे और देखते
ही देखते आसमान से उतर कर धरती पर आ गये । सभी दिशायें खुल गयी। आसमान साफ हो गया ।
कहीं भी धूल का कोई नामोनिशान नहीं रहा। पानी में भीगी धूल जमीन पर पड़ी थी । उसका ऊचाइयों
को छूने का गर्व चूर- चूर हो चुका था ।
यह देख कर धरती ने धूल से पूंछा –“ हे धूल- कणों ! तुमने अपनी इस
दुर्गति से क्या सीखा ?” धूल कणों ने धरती
से कहा –“ हे माता ! हमने अपने जीवन की इस घटना से ये सीखा कि उन्नति पाकर कभी
किसी को गर्व नहीं करना चाहिए। क्योंकि गर्व करने वाले का एक दिन निश्चित ही पतन
होता है ।
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