आत्म- साक्षात्कार
बात उन दिनों की है जब, भगवान बुद्ध अपना घर छोड़ कर सत्य की तलाश में
निकल चुके थे और अपना डेरा नेरंजरा river के
तट पर लगा लिया था। वो ज्ञान की तलाश में व्याकुल इधर से उधर घूम रहे थे ।
एक दिन उनकी एक सहयोगिनी सुजाता ने उनके लिए खीर बनायी और
बड़े प्रेम से बुद्ध के पास आयी और पूर्ण मातृत्व के साथ उनको खीर का भोग ग्रहण कने
को दिया । बुद्ध ने उस खीर को ग्रहण किया और परम संतोष का अनुभव किया।
उस दिन उनकी
जो समाधि लगी तो फिर वह पूरे six days के बाद सातवें दिन जाकर टूटी । पर इस बार वो
जब समाधि से उठे तो उनको आत्म- साक्षात्कार हो चुका था । आत्म – साक्षात्कार
अर्थात आत्मा से परमात्मा के संबंध का gyan हो चुका था ।
अब वो नेरंजना River के तट पर प्रसन्न मुख बैठे थे। उनको
देखने आई Sujata को भगवान बुद्ध को इतना light-hearted और Tranquil देख कर बड़ा विस्मय हुआ कि बुद्ध seven
days तक लगातार एक ही आसन पर कैसे बैठे रहे ? और अब उठे है तो कितने प्रसन्न हैं
जबकि समाधि से पहले कितने व्याकुल और व्यथित थे । सुजाता बुद्ध को देख यह सोच ही
रही थी कि तभी सामने से एक शव लिए जाते हुए कुछ व्यक्ति दिखाई दिए । उस शव को
देखते ही भगवान बुद्ध हँसने। सुजाता को अब और आश्चर्य हुआ और उसने बुद्ध से
प्रश्न किया –“ ये योगिराज ! कल तक आप जिस शव को देख कर दुखी हो जाते थे, आज उसे
देख कर आप हँस रहे हैं । आज आप का वह दुःख कहाँ चला गया ?”
भगवान बुद्ध ने कहा –“ बालिके ! सुख – दुःख मनुष्य की कल्पना
मात्र है । कल तक जड़ वस्तुओं में आसक्ति होने के कारण यह भय था कि कहीं वह न छूट
जाय – यह न छूट जाय, वह न बिछुड़ जाय- यह न बिछुड़ जाय । यह भय ही दुःख का कारण था,
आज मैने जान लिया कि जो जड़ है, उसका परिवर्तन तो होना पूर्णत: निश्चित है। पर जिसके लिए दुःख करते है
वो न तो परिवर्तनशील है और न ही नाशवान। वो तो अविनाशी है अमर है। अब तू ही बता जो
कभी न नष्ट होने वाला ज्ञान प्राप्त कर ले, उसे इस संसार की नाशवान वस्तुओं का
क्या दुःख ?”
सुजाता भगवान बुद्ध का यह answer सुनकर प्रसन्न हो गयी और स्वयं भी आत्म
– चिंतन में लग गयी।
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