भगवान बुद्ध का अनमोल मोती-राहुल
कपिलवस्तु के राज
कुमार सिद्धार्थ, अपने परिवार व राज्य का त्याग कर के तपस्या करने चले गये और फिर
पूरे seven year बाद अपने father शुद्धोदन के अनुरोध पर, बौधिसत्व को प्राप्त कर,
भगवान बुद्ध बन कर पुन: कपिलवस्तु में भ्रमण करने आये ।
कल के राजकुमार और आज के
तथागत को देखने और मिलने लोगों कि भीड़ कि भीड़ उमड़ पड़ी । मिलने वालों कि कतार में उनकी wife व son भी शमिल थे । God Buddha तो मन के बंधनों से परे जा जूक थे; पर ये
स्वाभाविक था कि उनकी पत्नी यशोधरा व पुत्र राहुल के मन में मोह का जागरण होना ।
यशोधरा की इच्छा हुयी, की किसी तरह बुद्ध राज महल राज महल लौट चलें, इसलिए यशोधरा
ने राहुल से कहा- कि वो बुद्ध कि संतान होने के नाते, अपनी विरासत कि मांग करें।
राहुल ने माँ की आज्ञा का
पालन किया और तथागत भगवान बुद्ध के पास गये और कहा –“ मैं आप का पुत्र हूँ इस नाते
आपकी विरासत पर मेरा भी अधिकार है।”
तथागत बुद्ध ने पुत्र
राहुल के मस्तक पर हाथ फेरा और बोले –“ पुत्र! मेरा ज्ञान, मेरा धर्म ही मेरी
धरोहर है और मेरी शिक्षा, मेरे ज्ञान- सूत्र मेरी
विरासत है । इन पर तुम्हारा भी उतना ही अधिकार है जितना मेरे शिष्यों का ।"
भगवान बुद्ध के वचनों ने राहुल
के बाल कोमल मन को अंदर तक झकझोर दिया और वो पिता से दीक्षा लेकर प्रवज्जा (ज्ञान
के प्रसार) पर निकल पड़े। आगे चल के उनकी गिनती भगवान तथागत के दस प्रमुख शिष्य –
रत्नों में हुई ।
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Note: The motivational story shared here is not my original creation, I have read it before and I am just providing it with my own
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