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गुरुवार, 29 अगस्त 2013

swami Vivekananda's motivational thoughts based on "Faith and Strength"



विश्वास और शक्ति

मेरे “page-3 in Hindi” के पहले लेख में मैं स्वामी विवेकानन्द जी के उन चुने हुए सद्वाक्यों एवं विचारों का collection ले कर आई हूँ जिनको उन्होंने विभिन्न विषयों पर विभिन्न समय और स्थान पर मानव जाति के कल्याण के लिए संसार के सम्मुख कहे थे



आज इस लेख के प्रथम भाग में मैने Swami Vivekananda जी के उन शक्ति- दायी विचारों का संग्रह किया है, जिन को उन्होंने मनुष्यों में विश्वास और शक्ति का जागरण करने के लिए अपने शिष्यों से उनके बीच कहे थे। ये विचार सिर्फ उनके शिष्यों में ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण world के लोगों में विश्वास और शक्ति का जागरण कर रहे हैं।

स्वामी विवेकान्दजी के इन विचारों को मैनें उनके विभिन्न मठों द्वारा प्रकाशित पुस्तकों से लिया है जिनको में बचपन से अपनी डायरी में लिखा करती थी, इसलिए इन पुस्तकों के नाम देने में मैं इस समय असमर्थ हूँ ,इस के लिए मुझे छमा करे।

विश्वास

Ø जो अपने आप में विश्वास नहीं करता, वो नास्तिक है। प्राचीन धर्मों ने कहा है, वह व्यक्ति नास्तिक है जो ईश्वर में विश्वास नहीं करता। नया धर्म कहता है, वह  नास्तिक है जो अपने आप में विश्वास नहीं करता।

Ø विश्वास, विश्वास, अपने आप में विश्वास, ईश्वर में विश्वास- यही महानता का रहस्य है। यदी तुम पुराण के तैंतीस करोड़ देवताओं और विदेशियों द्वारा बतलाये हुए सब देवताओं में विश्वास करते हो, पर यदी अपने आप पे विश्वास नहीं करते, तो तुम्हारी मुक्ति नहीं हो सकती। अपने आप में विश्वास करो, उस पर स्थिर रहो और शक्तिशाली बनो।

Ø हम देख सकते हैं कि दो मनुष्यों के बीच अंतर होने का कारण उनका अपने आप में विश्वास होना ही है। अपने आप में विश्वास होने से सब कुछ हो सकता है। मैनें अपने जीवन में इसका अनुभव किया है, अब भी कर रहा हूँ और जैसे-जैसे मैं बड़ा होता जा रहा हूँ, मेरा विश्वास और भी मजबूत होता जा रहा है ।

Ø कोई भी जीवन असफल नहीं हो सकता; संसार में असफल कही जाने वाली कोई वस्तु है ही नहीं। सेकड़ों बार मनुष्य को चोट पहुँच सकती है, हजारों बार वह पछाड़ खा सकता है, पर अंत में वह यही अनुभव करेगा कि वह स्वयं ही ईश्वर है।

Ø तुम्हारी सहायता कौन करेगा? तुम स्वयं ही विश्व कि सहायता स्वरूप हो। इस विश्व कि कौन सी वस्तु तुम्हारी सहायता कर सकती है। तुम्हारी सहायता करने वाला मनुष्य, ईश्वर या प्रेतात्मा कहाँ है? तुम स्वयं ही विश्व के रचियता भगवान हो, तुम किस से सहायता लोगे ? सहायता और कहीं से नहीं, पर अपने आप से ही मिलती है और मिलेगी। अपनी अज्ञानता कि स्थिति में तुमने जितनी प्रार्थना कि और उसका तुम्हे जो उत्तर प्राप्त हुआ, उसे तुम समझते रहे कि वह उत्तर किसी और व्यक्ति ने दिया है, पर वास्तव में तुम्हीं ने अनजाने में उन प्रार्थनाओं का उत्तर दिया है।  


Request- स्वामी विवेकानन्द जी के “स्वयं पर-विश्वास” विचारों का यह collection आप को कैसा लगा? क्या ये आप के जीवन में उपयोगी है ? please हमें ये comment के द्वरा जरुर बताने का कष्ट करें, और गर पसंद आये हो तो इनको share भी करें.. जिससे महापुरषों के सुविचारों कि ये खोज जारी रहे, और आप सब तक पहुँचती रहे।                             
            
   
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