v ऋतस्य
पथ्या अनु ।
अर्थात्
ज्ञानी सत्य मार्ग का अनुसरण करते हैं ।
सामवेद
v आशापाश
शताबधा वासनाभाव धारिण ।
कायात्कायामुपायान्ति वृक्षादवृक्षमिवाडजा । ।
अर्थात्
मनुष्य का मन अनेक
आशाओं और वासनाओं के बन्धन में बंधा हुआ, मृत्यु के उपरांत उन क्षुद्र वासनाओं की
पूर्ति वाली योनियों और शरीरों में उसी प्रकार चला जाता है, जैसे पंक्षी एक वृक्ष
को छोड़कर फल की आशा से दूसरे वृक्ष पर जा बैठता है ।
वैदिक ग्रंथों से
v अशांतस्य
कुत: सुखम ।
अर्थात् अशांत व्यक्ति
कभी भी सुखी नहीं रह सकता ।
श्रीमद्
भगवतगीता
v न शरीर
मल त्यागान्नरो भवति निर्मल: ।
मानसे तु मले व्यन्त्के भवत्यन्त: सुनिर्मल: । ।
अर्थात्,
शरीर से केवल मैल को
उतार देने से ही मनुष्य निर्मल नहीं हो जाता, मानसिक मैल का परित्याग करने पर ही, वह अत्यंत
निर्मल होता है।
वैदिक ग्रंथों से
v कुत्रापि
खेद: कायस्य जिव्हा कुत्रापि खिद्दते ।
मन: कुत्रापि तत्यक्त्वा पुरुषार्थे स्थित:
सुखम । ।
अर्थात्,
कहीं शरीर का दुःख
है, तो कहीं वाणी का दुःख है, तो कहीं मन का दुःख है . सुखी वही है, जो आत्मानंद
में निमग्न रहता है.
अष्टावक्र गीता
v आरंभो
न्याययुक्तो य: s हि धर्म इति स्मृत: ।
अर्थात्,
जो आचरण न्याय युक्त है, वही धर्म है ।
वैदिक ग्रंथों से
v शुचिं
पावकं ध्रुवं ।
अर्थात्
उनकी प्रशंसा करो, जो धर्म पर दृढ हैं ।
वैदिक ग्रंथों से
One
Request: Dear readers आप को ये Motivational and Inspirational thoughts पर
based ये post, Hindi में कैसी लगी? कृपया अपने comments के through हमें अवश्य
बताएं । और यदि आप इसे like करते हैं तो please
इसे अपने सभी friends and facebook friends के साथ share करें ।
Thanks