किसका महत्व ज्यादा- भावना,
बुद्धि या शरीर ?
spirit, mind, or body |
एक बार भावना, बुद्धि और शरीर तीनो आपस
में मस्ती मजाक कर रहे थे , और हँसी मजाक करते- करते
अचानक उनमें आपस में बहस छिड़ गयी कि उनमें कौन सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है ? शरीर
ने कहा- “ मैं मनुष्य के अस्तित्व का प्रतीक हूँ । मुझ से ही मनुष्य कि पहचान होती
है । यदी मैं न होता तो मनुष्य अपनी बुद्धि का
उपयोग नहीं कर पता और ना ही अपनी भावनाओं को प्रकट कर पाता । मेरे ही माध्यम से आप
दोनों स्वयं को दुनिया के सामने प्रकट कर पाते हो मेरे बिना आप दोनों का कोई
अस्तित्व ही नहीं है इसलिए मैं आप दोनों से ज्यादा महत्वपूर्ण हूँ ।“
इस पर बुद्धि बोली - “ मेरे
ना होने से मनुष्य पुर्णतः बेकार हो जायेगा उसका जीवन जीव- जंतु व जानवरों से जरा
सा भी भिन्न नहीं होगा । उसके आचरण और जानवरों के आचरण में कोई अंतर नहीं होगा ।
मनुष्य ने जो भी प्रगति कि है मेरे कारण कि है मेरे बीबा वह विकास के साधन नहीं
बना सकता मेरे बिना तो विकास ही असंभव है। मेरे अस्तित्व से ही मनुष्य का विकास
संभव है मेरे बिना ये सब मूल्य हीन है ।”
शरीर और बुद्धि कि बातों को
सुन कर भावना बोली –“ मनुष्य के जीवन में संस्कार, समृद्धि, विकास और सुंदरता ये
सब भावनावों के कारण हैं । भावनाओं के आभाव में मनुष्य और जड़ पदार्थों ( ईट –
पत्थर) में क्या अंतर रह जायेगा ? इसलिए आप सब में मैं ही सब से ज्यादा महत्वपूर्ण
हूँ।"
शरीर, बुद्धि और भावना के इस वार्त्तालाप
को छीर – सागर में बैठे सच्चिदानंद God Vishnu सुन रहे थे । प्रभु सम्पूर्ण
वार्त्तालाप को सुन कर मुस्कुरा उठे और उन तीनों से बोले –“ मनुष्य का जीवन तुम
तीनों के बिना अधूरा है । तुम तीनों के कारण ही मनुष्य जीवन बहुमूल्य बनता है ।
तुम में से किसी एक के भी ना होने से उस के जीवन में असंतुल आ जाएगा । वो अपना न
तो विकास कर पायेगा न अपने अस्तित्व का बरकरार रख पायेगा । मैंने मनुष्य को अतुल्य
शरीर, प्रखर और असीम बुद्धि, और अनंत भावनाएँ दी हैं । जिससे वह तुम सब में समुचित संतुलन बना कर, तुम तीनों का अपने जीवन में
समग्र व उचित उपयोग कर अपने जीवन को उन्नत कर सके । तुम तीनों ही उसे जीवन में
वरदान हो ।”
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