सुख और दुःख – केवल एक दृष्टिकोण
friends
गर आप से कहा जाये कि भगवान की एक दुकान पर सुख और एक दुकान पर दुःख मिल रहा है और
आप को इनमे से एक को खरीदना है । तो आप क्या खरीदेंगे..
? किस दुकान पर जायेंगे..?
i know आप का answer होगा सुख, obesity दुःख तो कोई लेना ही नहीं चाहेगा । ऐसा क्या है जो हम सब दुःख के नाम से
ही कॉप जाते है । सुख की कल्पना मात्र से भावविभोर हो जाते हैं ।
जीवन में सुख और दुःख की परिभाषा क्या है यह कहना बहुत कठिन है,
क्योंकि जो आपके लिए सुख का कारण बनता है वही कारण किसी और के जीवन में दुःख का
एहसास कराती है। ऐसा इसलिए क्योकि सुख और दुःख तो केवल एक दृष्टिकोण मात्र हैं ।
जिसकी दृष्टि जैसी होगी उसके जीवन में हर पल हर घटना उसे उसी के अनुरूप सुख या
दुःख में से किसी एक का अनुभव करायेगी।
सूरज का प्रकाश, उसका तेज, उसकी सुनहरी धूप प्रात: काल में तो सुख का
अनुभव कराती है वही पर दोपहर की तेज, चिलमिलाती धूप कष्टदायक होती है और दुःख का
एहसास कराती है । सूरज कि तेज किरणें गर्मी में दुःख और ठण्ड में सुख का एहसास
कराती है । यानि कि सूरज तो एक ही है पर वो कभी किसी के लिए आनंद का कारण बनता है
तो कभी दुःख का दाता बन जाता है पर सूरज तो एक ही है ना अर्थात हमारा दृष्टिकोण ही
है जो सुख और दुःख का अनुभव करता है ।
तो क्या आप अब मेरी बात से सहमत है कि सुख और दुःख- केवल एक
दृष्टिकोण है.. अभी नहीं O.K. मैं अपनी बात एक और सन्दर्भ से आप के सामने रखती हूँ
।
भोजन को ही लीजिये! एक व्यक्ति को दो दिन से भोजन ना मिला हो और उसे
तेज खूब भूख लगी हो, फिर उसे कही से दो सूखी रोटी खाने को मिल जाएँ । तो उस
व्यक्ति को वो रोटी खा कर जिस सुख की अनुभूति होगी वो उसे कीमती सोने चाँदी के ढेर
से भी नहीं होगी । वहीँ पे एक बीमार
व्यक्ति या ऐसा व्यक्ति जिसे भूख ना हो
उसका पेट बहुत भरा हो और उसके के सामने बहुत ही स्वादिष्ट व rich food खाने को रखा
हो। उसे खाने कि इच्छा उसे ना हो, या चाह कर भी खाने में असमर्थ हो तो वो भोजन उसे
कष्ट प्रद लगेगा, और उस व्यक्ति को दुःख कि अनुभूति होगी कि वो इतना सवादिष्ट food
नहीं खा पा रहा।
एक व्यक्ति के सामने भोजन
आता है तो वह आनंदित होता है और उसे सुख कि अनुभूति होती है वही पर जब दूसरे
व्यक्ति के सामने food आता है तो उसे दुःख कि अनुभूति होती है।
अब आप ही बताइए सुख और दुःख क्या है..? एक दृष्टिकोण या फिर...!!!
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